Does celebrity steps change the Indian society ?
विज्ञान का यह चमत्कार यानी आइवीएफ एक तरीके से सरोगेशन है. आइवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) में इन विट्रो का मतलब है कृत्रिम या बाहरी वातावरण और फर्टिलाइजेशन यानी निषेचन. निषेचन को हम जीव के पलने की शुरुआत कह सकते हैं. सरोगेशन यानी दूसरे के भ्रूण को अपनी कोख में पालना. सरोगेशन करने वाली महिला को सरोगेट मां कहा जाता है जो किराए पर कोख देकर दूसरों के बच्चों को जन्म देती है.
असिस्टेड रिप्रोडक्शन टेक्नीक्स (एआरटी) के विशेषज्ञ डॉ. श्रीमती नीरज पहलाजानी के अनुसार कई तरह की शारीरिक परेशानियों की वजह से कुछ माताएं खुद अपने गर्भ में बच्चा नहीं पाल सकतीं. आइवीएफ तकनीक ऐसी माताओं को भी मातृत्व का सुख देने में मददगार है. स्त्री-पुरुष संसर्ग के दौरान स्त्री के अंडाशय (ओवरी) से निकलने वाले अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु के मेल से गर्भधारण होता है. यह मेल या निषेचन (फर्टिलाइजेशन) अंडाशय और गर्भाशय को जोड़ने वाली डिंबवाहिनी नलिका (फैलोपियन ट्यूब) में होता है. लेकिन आइवीएफ एक ऐसी तकनीक है जिसमें बच्चा चाहने वाली स्त्री के अंडाणु और उसके पति के शुक्राणु को टेस्ट ट्यूब में लेकर मेडिकल लैब में इनका मेल कराया जाता है. इस मेल से बना भ्रूण दूसरी महिला (सरोगेट माता) के गर्भ में पलता है. जन्म के बाद बच्चे को उसके असल माता-पिता को सौंप दिया जाता है. सरोगेट मां यानी किराए पर कोख देने वाली महिला की भूमिका बच्चे को अपने गर्भ में पालने और जन्म देने तक सीमित है.
आइवीएफ का रास्ता चुनने वाले परिवार स्त्री की किसी शारीरिक कमजोरी के कारण यह रास्ता चुनते हैं. इनमें ज्यादातर वे महिलाएं होती हैं जिनकी दोनों फैलोपियन ट्यूब्स नहीं होतीं या ये किसी सर्जरी या इन्फेक्शन के कारण खराब हो जाती हैं. कई बार महिलाओं में बांझ्पन या बंध्यता के कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाते. और विभिन्न शारीरिक परीक्षणों के सामान्य नतीजों के बावजूद बांझ्पन की वजह पता नहीं चल पाती.
आइवीएफ की आम प्रक्रिया में सबसे पहले स्त्री को दवाइयां देकर अंडाशय में ज्यादा से ज्यादा अंडाणु तैयार करने की कोशिश की जाती है. इसके बाद सोनोग्राफी के जरिए अंडाणुओं के विकास का निरीक्षण किया जाता है. एनस्थेसिया देकर स्त्री के अंडाणु प्राप्त किए जाते हैं और इनका लैब में पुरुष के वीर्य से प्राप्त शुक्राणुओं से मेल कराया जाता है. 2 से 5 दिन में भ्रूण बनते हैं जिन्हें सरोगेट मां के गर्भाशय में दाखिल कराया जाता है.
ज्यादातर सरोगेट माताएं फर्टिलिटी सेंटरों पर खुद जाकर अपनी सेवा देने की इच्छा जाहिर करती हैं. संतान चाहने वाले पति-पत्नी इनसे सीधे नहीं मिल पाते लेकिन वे मान्यता प्राप्त एजेंसी या फर्टिलिटी सेंटर की मदद से इंटरनेट या अखबारों में विज्ञापन देकर किराए की कोख का इंतजाम कर लेते हैं. ''ज्यादातर मामलों में बच्चा चाहने वाले माता-पिता अपने परिवार की ही किसी महिला को सरोगेसी का जिम्मा सौंपने की कोशिश करते हैं. हमारे यहां कुछ ही मामले ऐसे होते हैं, जहां उन्हें अनजान सरोगेट की जरूरत होती है.'' सरोगेट माताएं यह काम पैसे के लिए करती हैं और इनमें सभी तरह की जरूरतमंद महिलाएं होती हैं-कोई महिला अपने बच्चों के लिए अच्छी पढ़ाई का इंतजाम करना चाहती है तो किसी को अपने पति का कर्ज उतारने के लिए हाथ बंटाना होता है. ''सरोगेसी का फैसला हड़बड़ी में नहीं होता. इसके लिए बच्चे के इच्छुक माता-पिता और सरोगेट मां दोनों की ही अच्छी तरह काउंसिलिंग की जाती है. इसके बाद ही कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए वकील की मौजूदगी में एक अनुबंध पर सभी संबंधित पक्ष हस्ताक्षर करते हैं.''
आर्थिक मजूबरी में सरोगेसी के लिए अपनी कोख किराए पर देना किसी महिला के लिए पेशेवर फैसला हो सकता है. हालांकि इसमें भावनात्मक पेचीदगियां भी कम नहीं हैं. ''भारत में वर्षों के अनुभव के बाद अब अनुबंध की शर्तें इतनी ज्यादा स्पष्ट होती हैं कि किसी भी तरह की कानूनी अड़चनें सामने नहीं आतीं. हर सरोगेट मां को आखिरी दिन क्या होगा, यह अच्छी तरह मालूम है. सो बच्चे का हस्तांतरण आसानी से हो जाता है.'' सरोगेट मां का चयन और बच्चा चाहने वाले दंपतियों का उसके साथ होने वाला अनुबंध एक सामाजिक-आर्थिक पहलू है, जिसमें मेडिकल साइंस का कोई दखल नहीं. उनके मुताबिक, ''इनके बीच पैसों के लेन-देन और कानूनी अनुबंध में डॉक्टरों की कोई भूमिका नहीं होती. हमारा काम है तकनीकी और मेडिकल मदद देना. मान्यता प्राप्त एजेंसियां सरोगेट मां का इंतजाम करती हैं और इनके सहयोग से बच्चे के इच्छुक दंपती इनके साथ कानूनसम्मत अनुबंध करते हैं.''
भारत में अनुमान है कि यहां 3 करोड़ महिलाएं बंध्यता की शिकार हैं, इनमें करीब 20 फीसदी को आइवीएफ की जरूरत है, लेकिन बमुश्किल 10 फीसदी लोग इसका खर्च वहन करने में सक्षम हैं. बच्चों की चाहत में पिछले कई वर्षों से विदेशी मूल के लोग भारत आते हैं, लेकिन बढ़ती जागरूकता और सफलता की दर को देखते हुए आम भारतीय भी आइवीएफ-सरोगेसी का रास्ता अपनाने लगे हैं.
दरअसल, आइवीएफ-सरोगेशन भारतीय समाज में पिछले एक दशक से मौजूद है लेकिन सामाजिक ताने-बाने की नजाकत और कई किस्म की कानूनी अड़चनों के कारण मातृत्व का यह वैज्ञानिक विकल्प विवाद का विषय रहा है. फिलहाल भारत में सरोगेसी को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है. सो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के 2005 के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाता है. इस संबंध में सरोगेसी असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी बिल का मसौदा तैयार है जिसे भारतीय समाज और चिकित्सा विज्ञान के लिए खासा उपयोगी माना जा रहा हैं. उम्मीद करें, इसके बाद संतान सुख पाना आसान होगा.
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ReplyDeleteIVF or Surrogacy is option which childless couple choose to have their own child. At Rana Fertility Center we ensure that we provide the best surrogacy service in Ludhiana, Punjab.
ReplyDeleteIVF IN INDIA